कौन कहता है कि कविता मर गयी?

बेरंग धन

अंध-भक्तों ने बरबाद कर डाला

कई सारे मेहमानों को

 

दार्शनिकों की एक न मान कर

सिकन्दर

अंध-भक्तों की आस्था, श्रद्धा और

विश्वास की शक्ति

या कायरता से प्रेरित

अथवा कहो दिगभ्रमित होकर

आकाश, प्रकाश और अविनाश

प्राप्ति की अभिलाषा ले कर

सनातनत्व और देशभक्ती की

महिमागान का डोल बजाते

हिन्दोस्तान के गणराज्यों में

“जय गण !”, “जय गणराज्य !”

की माला जपते

गणपतियों की गृह-प्राचीरों में

छुपे छुपाए धन को श्वेत बनाने

और देशभक्तों की तृप्ती करने

आया और

हिन्दोस्तान को रौंद कर

चला गया ।

 

अंध-भक्तों ने बरबाद कर डाला

कई सारे मेहमानों को

 

आए कई अतिथि इस घर में

बेरंग धन को श्वेत बनाने

सोमनाथ के मन्दिर से पूछो

कितने प्रयास हुए

उस भव्य धरा पर

17 बार गज़नवी भी आया

बेरंग धन को श्वेत बनाने

हिन्दोस्तान को रौंद के वह भी

मन चाहा धन संचय कर के

गया और फिर

लौट न आया

         ….

 

अंध-भक्तों ने बरबाद कर डाला

कई सारे मेहमानों को

 

गौमाता की जय जय करते

देशभक्ती का राग आलापते

भारत माता की स्तुति की धुन पर

“जय श्री राम” का नाच नचाने

सुनो कोई फिर आया है

परिवार का बलिदान दे कर

और कई कारनामे कर के

बेरंग धन की छानबीन करने

सुनो कोई फिर आया है

 

हिन्दोस्तान को रौंद के वह भी

आखिर चला ही जाएगा ।

ज़िहन निशीन   नवम्बर 14, 2016

अत्यधिक वृद्ध माता श्री

हुआ यूँ कि वह फंस गया
लोग समझ चुके थे उसको
उसके अभिप्राय को भी
उसकी मनोदशा के साथ
वीरता या कायरता के कारण 
किए उसके जन-अपराधों को

वह एक आतंकवादी था ।

माँ तो होती ही है कोमल
उसकी अत्यधिक वृद्ध माता श्री थीं

उसे बचाने वह भी निकलीं
घर-घर, दर-दर भटकीं मैया 
आतंककार के प्राण बचाने

उसकी एक पुत्री भी थी
तरुण, कोमल, कँवल सी
वह भी घर से निकली छुप कर
पूँजीवाद की करनी हेतु
महासेठ की शय्या पर
विवशता के पुष्प चढाने
“महासेठ ! मेरे पिता श्री की
रक्षा कर लो, प्राण बचाओ !”

ज़िहन निशीन   नवम्बर 15, 2016